Saturday, November 23, 2024
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गांड़ा जाति को अनुसूचित जन जाति वर्ग में सम्मिलित करने की मांग… सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा ज्ञापन…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के मूल निवासी, गांड़ा जाति को पहले की भांति अनुसूचित जन जाति वर्ग में सम्मिलित करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग, रायपुर को ज्ञापन सौंपा गया है, जिसमे कहा गया कि..

01 मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य आस पास के राज्यों गांड़ा जाति के मूल निवासी के लोग बड़ी संख्या में प्राकृतिक काल से आज तक निरंतर निवास करते आ रहे हैं।

02. यह कि समय, परिस्थिति, स्थान, दूरी के अंतर के स्वाभाविक प्रभाव के उच्चारण भिन्नता से और शासन के अधिकारी, कर्मचारी के लेखन त्रुटी के कारण गांड़ा जाति को ही कहीं गांड़ा, गड़वा, गांडा, गदवा, गदावा, गढावा, गढवा, गड़ावा, गड़वा, गंडवा, गंडावा के नाम से जाना जा रहा है। अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी रुपांतर शब्दों में भी स्वाभाविक अंतर हो जाता है।

03. यह कि हमारी जाति के लोग पेन पुरखा कुल देवता के रुप मे बूढ़ा देव, दुल्हा देव, शितला माता, दंतेश्वरी माता, डिंडेश्वरी माता, देवा, बूढ़ी देवी या ठकुरानी माता, प्रकृति को मानते हैं, बाजा बजा कर पूजा, स्मरण करते हैं। प्रकृति के रक्षा के लिए हमारे जाति के विभिन्न गोत्र के लोग टोटम को मानते हुए अलग अलग वनस्पति एवं जंतुओं को संरक्षण एवं संवर्धन करते है, अर्थात एक गोत्र वाले कुछ पेड़ो को काट कर इस्तेमाल नहीं करते तो दूसरे गोत्र के लोग उसी पेड़ को काट कर इस्तेमाल कर सकते हैं, ठिक इस प्रकार हमारे गांड़ा जाति के कुछ गोत्र लोग एक जन्तू का शिकार नहीं करते हैं, तो दूसरे गोत्र के लोग उसी जंतू का शिकार कर सकते हैं वे किसी अन्य दूसरे जन्तू को शिकार नहीं करते हैं, (यह शिकार वाली बात आज कहीं लागू नही हो रहा क्योंकि कानूजन शिकार करना वर्जित है, मात्र उदाहरण के लिए लिखा गया है।) आज भी हमारे बुर्जुगों के मुंह में अनायास गोड-गांड़ा भाई भाई का वचन, कचन प्रकट होते रहते हैं।

04. यह कि तत्कालीन सीपी एवं बरार राज्य सरकार के आदेश कमांक 1962-777-12 नागपुर दिनांक 31.03. 1949 के अंतर्गत अनुसूची 38 के कमांक 39 में गंड़वा गांड़ा जाति को आदिवासी- अनुसूचित जन जाति वर्ग मे रखा गया है।

05. यह कि देश के आजादी के बाद प्रथम बार राज्य पुर्नगठन के समय गांड़ा समाज के बिना जानकारी, बिना सहमति, बिना किसी कारण के बिना किसी असुविधा के, गांड़ा जाति को अनूसूचीत जाति वर्ग में शामिल कर लिया गया है।

जबकि आज भी गांड़ा शब्द से उत्पन्न भ्रामक, उच्चारण भिन्नता, लेखन भिन्नता, लेखन त्रुटी (अंग्रेजी से हिन्दी) गंड़वा, गंड़ावा, गढ़वा, गंडवा/गांड़ा, गडाबा, गड़बा आदि जातियों को अनुसूचीत जन जाति वर्ग में रखा गया है। वर्तमान राज्य सरकार मे जाति अनुसंधान एवं परीक्षण संस्थान रायपुर मे स्पष्ट उल्लेख है कि गांड़ा जाति को ही गंड़वा कहा जाता है।

06. यह कि आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से गांड़ा जाति अन्य अनुसूचित जनजातियों एवं जातियों के तुलना में अभी बहुत पिछड़े हुए हैं। गांड़ा जाति के लोग आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति को पालन कर रहे हैं, फल स्वरुप आज तक गांड़ा जाति अन्य अनुसूचीत जन जाति जैसे सम्मान स्थिति में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। छ.ग. राज्य के सभी 29 जिलों ने गांड़ा जाति की कुल संख्या लगभग 30 से 35 लाख के आस पास हैं।

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के मूल निवासी, गांड़ा जाति को पहले की भांति अनुसूचित जन जाति वर्ग में सम्मिलित करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग, रायपुर को ज्ञापन सौंपा गया है, जिसमे कहा गया कि.. 01 मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व अन्य आस पास के राज्यों गांड़ा जाति के मूल निवासी के लोग बड़ी संख्या में प्राकृतिक काल से आज तक निरंतर निवास करते आ रहे हैं। 02. यह कि समय, परिस्थिति, स्थान, दूरी के अंतर के स्वाभाविक प्रभाव के उच्चारण भिन्नता से और शासन के अधिकारी, कर्मचारी के लेखन त्रुटी के कारण गांड़ा जाति को ही कहीं गांड़ा, गड़वा, गांडा, गदवा, गदावा, गढावा, गढवा, गड़ावा, गड़वा, गंडवा, गंडावा के नाम से जाना जा रहा है। अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी रुपांतर शब्दों में भी स्वाभाविक अंतर हो जाता है। 03. यह कि हमारी जाति के लोग पेन पुरखा कुल देवता के रुप मे बूढ़ा देव, दुल्हा देव, शितला माता, दंतेश्वरी माता, डिंडेश्वरी माता, देवा, बूढ़ी देवी या ठकुरानी माता, प्रकृति को मानते हैं, बाजा बजा कर पूजा, स्मरण करते हैं। प्रकृति के रक्षा के लिए हमारे जाति के विभिन्न गोत्र के लोग टोटम को मानते हुए अलग अलग वनस्पति एवं जंतुओं को संरक्षण एवं संवर्धन करते है, अर्थात एक गोत्र वाले कुछ पेड़ो को काट कर इस्तेमाल नहीं करते तो दूसरे गोत्र के लोग उसी पेड़ को काट कर इस्तेमाल कर सकते हैं, ठिक इस प्रकार हमारे गांड़ा जाति के कुछ गोत्र लोग एक जन्तू का शिकार नहीं करते हैं, तो दूसरे गोत्र के लोग उसी जंतू का शिकार कर सकते हैं वे किसी अन्य दूसरे जन्तू को शिकार नहीं करते हैं, (यह शिकार वाली बात आज कहीं लागू नही हो रहा क्योंकि कानूजन शिकार करना वर्जित है, मात्र उदाहरण के लिए लिखा गया है।) आज भी हमारे बुर्जुगों के मुंह में अनायास गोड-गांड़ा भाई भाई का वचन, कचन प्रकट होते रहते हैं। 04. यह कि तत्कालीन सीपी एवं बरार राज्य सरकार के आदेश कमांक 1962-777-12 नागपुर दिनांक 31.03. 1949 के अंतर्गत अनुसूची 38 के कमांक 39 में गंड़वा गांड़ा जाति को आदिवासी- अनुसूचित जन जाति वर्ग मे रखा गया है। 05. यह कि देश के आजादी के बाद प्रथम बार राज्य पुर्नगठन के समय गांड़ा समाज के बिना जानकारी, बिना सहमति, बिना किसी कारण के बिना किसी असुविधा के, गांड़ा जाति को अनूसूचीत जाति वर्ग में शामिल कर लिया गया है। जबकि आज भी गांड़ा शब्द से उत्पन्न भ्रामक, उच्चारण भिन्नता, लेखन भिन्नता, लेखन त्रुटी (अंग्रेजी से हिन्दी) गंड़वा, गंड़ावा, गढ़वा, गंडवा/गांड़ा, गडाबा, गड़बा आदि जातियों को अनुसूचीत जन जाति वर्ग में रखा गया है। वर्तमान राज्य सरकार मे जाति अनुसंधान एवं परीक्षण संस्थान रायपुर मे स्पष्ट उल्लेख है कि गांड़ा जाति को ही गंड़वा कहा जाता है। 06. यह कि आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से गांड़ा जाति अन्य अनुसूचित जनजातियों एवं जातियों के तुलना में अभी बहुत पिछड़े हुए हैं। गांड़ा जाति के लोग आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति को पालन कर रहे हैं, फल स्वरुप आज तक गांड़ा जाति अन्य अनुसूचीत जन जाति जैसे सम्मान स्थिति में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। छ.ग. राज्य के सभी 29 जिलों ने गांड़ा जाति की कुल संख्या लगभग 30 से 35 लाख के आस पास हैं।