Wednesday, March 12, 2025
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आसमान से गिरे अंगारे, जो छीन ले गए गांव की खुशियां! 150 सालों से होली नहीं खेला यह गांव! जानिए रहस्यमय कहानी…

150 सालों से होली नहीं मनाने वाला गांव: कोरबा का खरहरी गांव/ रंगों के बीच एक अनोखी परंपरा 

कोरबा। होली रंगों और उमंग का त्योहार है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का खरहरी गांव पिछले 150 सालों से इस त्योहार से दूर है। यहां न रंग खेला जाता है, न ही होलिका दहन किया जाता है।

150 साल पुरानी मान्यता

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब 150 साल पहले होलिका दहन के दिन गांव में अचानक आग लग गई थी, जिससे भारी नुकसान हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जैसे ही बैगा (गांव का पुजारी) ने होलिका दहन किया, उसके घर में आग लगी और फिर पूरी बस्ती जलकर खाक हो गई। तभी से गांव में यह मान्यता है कि अगर होली मनाई गई तो कोई अनहोनी हो सकती है।

76% साक्षरता दर, फिर भी परंपरा कायम

खरहरी गांव की साक्षरता दर 76% है, लेकिन पढ़े-लिखे लोग भी इस परंपरा को निभा रहे हैं। गांव के युवा भी इस मान्यता को आगे बढ़ा रहे हैं।

युवा पीढ़ी का क्या कहना है?

गांव के 11वीं कक्षा के छात्र नमन चौहान कहते हैं, “हम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन परंपरा का पालन करना जरूरी है। अगर हम होली मनाएंगे तो गांव में अनहोनी हो सकती है।”

क्या बदलेगी परंपरा?

हालांकि, विज्ञान और शिक्षा के इस दौर में भी गांव के लोग इस अंधविश्वास को निभा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या आने वाली पीढ़ी इस परंपरा को बदलेगी या इसे यूं ही निभाती रहेगी?

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150 सालों से होली नहीं मनाने वाला गांव: कोरबा का खरहरी गांव/ रंगों के बीच एक अनोखी परंपरा  कोरबा। होली रंगों और उमंग का त्योहार है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का खरहरी गांव पिछले 150 सालों से इस त्योहार से दूर है। यहां न रंग खेला जाता है, न ही होलिका दहन किया जाता है।

150 साल पुरानी मान्यता

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब 150 साल पहले होलिका दहन के दिन गांव में अचानक आग लग गई थी, जिससे भारी नुकसान हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जैसे ही बैगा (गांव का पुजारी) ने होलिका दहन किया, उसके घर में आग लगी और फिर पूरी बस्ती जलकर खाक हो गई। तभी से गांव में यह मान्यता है कि अगर होली मनाई गई तो कोई अनहोनी हो सकती है।

76% साक्षरता दर, फिर भी परंपरा कायम

खरहरी गांव की साक्षरता दर 76% है, लेकिन पढ़े-लिखे लोग भी इस परंपरा को निभा रहे हैं। गांव के युवा भी इस मान्यता को आगे बढ़ा रहे हैं।

युवा पीढ़ी का क्या कहना है?

गांव के 11वीं कक्षा के छात्र नमन चौहान कहते हैं, "हम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन परंपरा का पालन करना जरूरी है। अगर हम होली मनाएंगे तो गांव में अनहोनी हो सकती है।"

क्या बदलेगी परंपरा?

हालांकि, विज्ञान और शिक्षा के इस दौर में भी गांव के लोग इस अंधविश्वास को निभा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या आने वाली पीढ़ी इस परंपरा को बदलेगी या इसे यूं ही निभाती रहेगी?