गौरेला-पेंड्रा-मरवाही । बीते कुछ दिनो जिले के एक पत्रकार सुशांत गौतम पर वन विभाग के कर्मचारी जो करोड़ो के घोटाले में शामिल था उस घोटालेबाज की शिकायत पर पांच माह बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया है . वही पुलिस की इस षणयंत्र पूर्वक हुए एफआईआर पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए है .
क्यो हुई FIR..?
निलंबित वनरक्षक सुनील चौधरी ने मरवाही थाने 4 जनवरी 2023 को एक शिकायत दर्ज कराई की पत्रकार सुशांत गौतम ने दिनांक 31 दिसम्बर 2022 मरवाही जाकर सुनील चौधरी से जबरन पैसे ही मांग की साथ ही जातिगत गाली गलौज की जिसपर पुलिस ने बिना जांच किये पांच माह बाद पत्रकार पर एफआईआर दर्ज कर दिया . जबकिं उक्त दिनांक को पत्रकार मरवाही गया ही नही था वही उक्त घोटाले का खुलासा छत्तीसगढ़ उजाला में दिनांक 2 जनवरी 2033 को प्रकाशित किया गया था जिसके बाद तैस में आकर घोटालेबाज वनरक्षक ने शिकायत दर्ज कराई थी
क्या है FIR का दूसरा पहलू -?
मामले की गहराई तक जाते है और घटना के कुछ और पहलुओं पर बात करते है तो यह स्पष्ट होता है कि मरवाही वनमंडल में कुछ दिनों पूर्व नेचर कैम्प फर्जी समिति गठित कर करोड़ो की वित्तीय अनियमितता का घोटाला उजागर पत्रकार सुशांत गौतम द्वारा किया गया था जिसमे आठ अधिकारी कर्मचारी समेत शिकायत कर्ता सुनील चौधरी पर निलंबन की कार्यवाही की गई थी जिसकी जांच दो आईएफएस तीन एसडीओ स्तर के अधिकारियों द्वारा की गई थी वही जांच के अंतिम निष्कर्ष पर यह स्पष्ट आलेखित किया गया कि वनरक्षक सुनील चौधरी द्वारा 3748937 की शासकीय राशि का गबन किया है वही अन्य सभी घोटालेबाज अधिकारियों कर्मचारियों ने मिलकर करोड़ो के इस घोटाले को अंजाम दिया था .इस खुलासे के बाद घोटाले में शामिल सुनील चौधरी अपनी जाति का गलत इस्तेमाल करते हुए झूठी शिकायत मरवाही थाने में की गई ।
मामला प्रथम दृष्टया ही झूठा और बेबुनियाद साबित होता है मगर पुलिस द्वारा उक्त मामले में बिना जाँच के ही पांच माह बाद अपराध दर्ज कर लिया गया है जिससे यह परिलक्षित होता है कि कही न कही इस घोटाले की रकम पुलिस तक पहुँचाई गई है .
भ्रष्टाचार का गढ़ बना जिला जीपीएम :-
जिले मे भ्रष्टाचार पर अपने चरम पर है ऐसा कोई भी विभाग इससे अछूता नही है हाल ही में सोशल मीडिया में एक वीडियो जमकर वाइरल हो रहा है जिसमे रेत माफिया खुलेआम ग्रामीणों को धमकाता हुआ नजर आ रहा है यह विवाद इतना बढ़ा कि हाथापाई तक कि नौबत आ गई जिसमें रेत माफिया खुलेआम फारेस्ट , माइनिंग , और यातायात विभाग को पैसे पहुँचाने की बात कर रहा है मतलब विभाग सिंडिकेट कर इन अपराधी माफियाओं को संरक्षण प्रदान कर रहा है वही मामले में अब तक किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नही की गई है जिससे यह साफ परिलक्षित होता है कि जीपीएम पुलिस रेत माफियाओं से पोषित हो रही है वही जिले में खुलेआम करोड़ो का जुआ सट्टा समेत गांजे की तस्करी का खुल्ला खेल चल रहा है मगर पुलिस प्रशासन इन सब से बेखबर है
अंतरराज्यीय सटोरियों को बेहतर सुविधाएं मिलती है जीपीएम जिले में : –
मध्यप्रदेश की सीमा से लगने वाले जिले जीपीएम में अन्य राज्यो जैसे शहडोल , करंजिया , अनूपपुर , मनेंद्रगढ़ , आमाडाँड़ से भी लोग जुआ सट्टा खेलने आते है इन जुआरियो के लिए जीपीएम जिला सबसे सेफ जिला है यहाँ पेण्ड्रा थाने से 2 से 3 किलोमीटर की दूरी पर प्रशासन की निगरानी में जुआ सट्टा चलता है वही गौरेला थाने के सामने ही भट्टाटोला दशकों से जुआ चलता आ रहा है . इतना ही नही मरवाही के जंगलो के भी जुए का बहुत बड़ा कारोबार फल फूल रहा है . जिसकी पूरी सूचना पुलिस प्रशासन को है मगर सैया भये कोतवाल तो डर काहे का .
जीपीएम जिले के पुलिस अधिकारी समेत टीआई आरक्षक की कॉल डिटेल से होगा बड़ा खुलासा : –
आपको बता दे कि पुलिस विभाग में बैठे उच्चाधिकारी , टीआई , आरक्षको के मोबाईल की कॉल डिटेल अगर निकाली जाए तो यह बात स्पष्ट होगी कि इन पुलिस महकमे के लोगो की सबसे ज्यादा बात सटोरियों जुआरियों से ही होती है जो समय समय पर अपनी जरूरतों के लिए इन जुआरियों सटोरियों पर आश्रित है चूंकि शासन की तनख्वाह से इन अधिकारियों का पेट नही भरता तब तो इन जुए सट्टे खिलाने वाले इनका घर भर रहे है . अब जिसका नमक खाएं उसके साथ बेईमानी नही होती इसलिए खुद पुलिस इन सटोरियों को संरक्षण दे रही है।
अब सवाल यह उठता है कि पुलिस प्रशासन जिसका कार्य कानून न्याय व्यवस्था संभालना है जब वही इन सटोरियों जुआरियों को संरक्षण प्रदान करने लगेगा तो आखिर आमजन का पुलिस प्रशासन पर कैसे भरोषा कायम हो पायेगा . यह पुलिस महकमे के लिए भी सोचनीय विषय की आखिर यह जुआरी सटोरियों को संरक्षण देने का ही कारण था कि एक पुलिस आरक्षक पर सटोरी जुआरी हमला करते है और पुलिस मामले की लीपापोती में लग जाती है आखिर इसकी परिणीति यही होगी की पुलिस से ज्यादा लंबे हाथ इन जुआरियों सटोरियों के हो जायेगे जो कभी भी पुलिस के गिरेबान तक पहुँच जायेगे।