बिलासपुर। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लोग भजन-कीर्तन, रासलीला और झांकी के माध्यम से उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं। परंतु, हाल के वर्षों में कुछ स्थानों पर इस पवित्र पर्व का स्वरूप बदलता दिख रहा है। विशेष रूप से रैलियों में, जहां भक्ति और आनंद के स्थान पर शक्ति प्रदर्शन का माहौल बनने लगा है।
इस वर्ष, कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में निकाली गई ,इस शोभायात्रा में कुछ लोगों को डीजे का तेज आवाज के बीच बेसबॉल बैट, स्टिक की रॉड और फरसा जैसे जानलेवा हथियार लेकर देखा गया। ये हथियार न केवल अनावश्यक थे, बल्कि इनका प्रदर्शन समाज के लिए खतरनाक संकेत भी है। धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव में इस प्रकार के हथियारों का प्रदर्शन समाज में भय और अशांति का माहौल पैदा कर सकता है, जो कि समाज की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।
हथियारों का इस प्रकार का प्रदर्शन एक चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। जब लोग धार्मिक रैलियों या उत्सवों में हथियार लेकर शामिल होते हैं, तो यह संकेत देता है कि समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। इसका एक बड़ा कारण समाज में बढ़ता ध्रुवीकरण और धार्मिक-जातीय संघर्ष हो सकता है।
इसके अलावा, ऐसे प्रदर्शन से बच्चों और युवाओं के मन में हिंसा के प्रति आकर्षण बढ़ सकता है, जो कि समाज के भविष्य के लिए खतरे का संकेत है। इस प्रकार की घटनाएं समाज के ताने-बाने को कमजोर करती हैं और आपसी भाईचारे को खत्म करने की दिशा में बढ़ती हैं।
समाज के हर सदस्य और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। धार्मिक आयोजनों को पवित्र और शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए।
प्रशासन को भी सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे किसी भी प्रकार के हथियारों के प्रदर्शन पर रोक लगाई जा सके। इसके लिए आवश्यक है कि रैली और उत्सवों के आयोजन के लिए पूर्व अनुमति के नियम सख्त किए जाएं और सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस की निगरानी बढ़ाई जाए।