Friday, November 15, 2024
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छत्तीसगढ़ का एकमात्र महालक्ष्मी मंदिर जो पुष्पक विमान की तरह बना है… जहाँ 252 सीढ़ियाँ चढ़कर मिलती है माँ लक्ष्मी की आशीर्वाद… दीपावली पर विशेष पूजा…

छत्तीसगढ़ का प्राचीन लक्ष्मी मंदिर : आस्था का प्रमुख केंद्र रतनपुर में स्थित है छत्तीसगढ़ का एकमात्र प्राचीन लक्ष्मी मंदिर

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से लगभग 25 किमी दूर रतनपुर के कोटा मार्ग पर इकबीरा पहाड़ी पर स्थित लखनी देवी मंदिर हजारों भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इसे लगभग 800 साल पुराना माना जाता है, और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है।

मंदिर का निर्माण और विशेष महत्व

इस मंदिर का निर्माण 1179 में कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के मंत्री गंगाधर ने कराया था। मान्यता है कि मंदिर के बनते ही राज्य से अकाल और महामारी समाप्त हो गई और खुशहाली वापस लौट आई। मंदिर का आर्किटेक्चर शास्त्रों में वर्णित पुष्पक विमान जैसा है और इसके भीतर श्रीयंत्र का अंकन भी है, जो धन-वैभव और सुख-समृद्धि का प्रतीक है।

मां लखमी देवी
मां लखमी देवी

गुरुवार को होती है विशेष पूजा

मार्गशीर्ष महीने के हर गुरुवार को देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें भक्तों का भारी संख्या में आगमन होता है। दीपावली के दिन यहां 252 सीढ़ियां चढ़कर हजारों श्रद्धालु विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

अष्टदल कमल पर विराजमान सौभाग्य लक्ष्मी 

मंदिर में देवी लक्ष्मी की प्रतिमा अष्टदल कमल पर विराजित है, जो अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का स्वरूप है। इस स्वरूप की पूजा से सौभाग्य और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

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छत्तीसगढ़ का प्राचीन लक्ष्मी मंदिर : आस्था का प्रमुख केंद्र रतनपुर में स्थित है छत्तीसगढ़ का एकमात्र प्राचीन लक्ष्मी मंदिर बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से लगभग 25 किमी दूर रतनपुर के कोटा मार्ग पर इकबीरा पहाड़ी पर स्थित लखनी देवी मंदिर हजारों भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इसे लगभग 800 साल पुराना माना जाता है, और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है। मंदिर का निर्माण और विशेष महत्व इस मंदिर का निर्माण 1179 में कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के मंत्री गंगाधर ने कराया था। मान्यता है कि मंदिर के बनते ही राज्य से अकाल और महामारी समाप्त हो गई और खुशहाली वापस लौट आई। मंदिर का आर्किटेक्चर शास्त्रों में वर्णित पुष्पक विमान जैसा है और इसके भीतर श्रीयंत्र का अंकन भी है, जो धन-वैभव और सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
मां लखमी देवी
मां लखमी देवी
गुरुवार को होती है विशेष पूजा मार्गशीर्ष महीने के हर गुरुवार को देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें भक्तों का भारी संख्या में आगमन होता है। दीपावली के दिन यहां 252 सीढ़ियां चढ़कर हजारों श्रद्धालु विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। अष्टदल कमल पर विराजमान सौभाग्य लक्ष्मी  मंदिर में देवी लक्ष्मी की प्रतिमा अष्टदल कमल पर विराजित है, जो अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का स्वरूप है। इस स्वरूप की पूजा से सौभाग्य और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।